Sunday 10 November 2013

Day -2

9 नवंबर 2013
रात यही कोई पौने दस के आस-पास टाइम होगा,सर्दी दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है,आज भी काफी ठंडा …
आज फिर मैं और मेरा ऑफिस दोनों गैर-इत्तेफाकन आमने-सामने …
मैं भी निःशब्द  - ऑफिस भी पारम्परिक रूप से शान्त, निःस्तब्ध 
बहुमंजिला, आलीशान ऑफिस....
इस ऑफिस की हर एक चीज को मैंने बड़ी शिद्दत के साथ बनाया-सजाया था।
सामने ऊपर से नीचे तक सारा डेकोरेशन रिफ्लेक्टिव कांच का, अंदर ऑफिस में भी इम्पोर्टेड मोल्डेड ग्लास …
काफी खूबसूरत बनाया था,  बड़ी शान से लोगों से कहता था "ऑफिस आना- वहीँ बात करेँगे"
शहर में भी चर्चा का विषय था - मेरा ये ऑफिस और इसकी भव्यता ।
दरअसल ये कांच जितना खूबसूरत होता है उससे कहीं ज्यादा नाज़ुक भी  .......
किसी का भी एक ढेला सारे शीशमहल को पलभर में तोड़कर बिखेर देता है।
ठीक मेरे सपनों की तरह....  जैसे आज मै  टूट कर बिखर गया हूँ … रोड पर, 
अपने उसी भव्य ऑफिस  के सामने,
रोड के इसपार फुटपाथ पर खड़े टेलीफोन के जंक्शन बॉक्स के सहारे बैठने से कहीं ज्यादा छुपकर .... अपलक निहार रहा हूँ।
अपना ऑफिस ....
कभी मै यहाँ का बॉस था।  छोटी ही सही पर कभी यहाँ मेरी बादशाहत चलती थी ।
बुझती जा  रही हैं एक-एक करके ऑफिस की लाइटें, ठीक मेरे अरमानों की तरह ....
एम्प्लाइज भी एक-एक करके अपनी-अपनी गाड़ियों से निकल रहे हैं, जैसे निकल गये मेरे  सारे दोस्त ....
शायद अब ऑफिस बंद हो रहा है। 
ये छाले अक्सर रात में  कुछ ज्यादा ही दर्द  करने लगते हैं।  दोनों छाले- पाँव के हों या दिल के। 
आज तो पैदल चलना भी दुश्वार हो गया है-इन छालों की वजह से 
मैं सोच रहा हूँ- मै नही हम- हम दोनों। …
मै और मै- एक जे.पी. मोटिवेटर और दूसरा जे. पी. इंटरप्रेन्योर।
सामने ऑफिस बंदकर वॉच-मैन बैठा बीड़ी जला रहा है
आपस में बातें करते बगल से गुजर रहे कुछ स्टूडेंट्स में से किसी एक ने सिगरेट पीकर फेंकी।
 काफी है , बाकी मै  पी लेता हूँ।
एक सीन याद  आ रहा है किसी हिंदी फ़िल्म का
"आज उतनी भी मयस्सर है नही मयखाने में, जितनी पीकर छोड़ दिया करते थे पैमाने में...."
"Last Journey of an Entrepreneur"        A real Story Live....   क्रमशः  जारी है…

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