Saturday 9 November 2013

Last journey of an entrepreneur
A real story (Live)
'मै' और 'मै,
हमदोनों
इनदिनों ज्यादातर साथ-साथ ही रहते हैं, साथ-साथ समय बिताते हैं, एक-दूसरे से बातें करते रहते हैं,
बातें- वे बातें जो नितांत निजी, हैं , घोर व्यक्तिगत
वे बातें- जिन्हे दूसरो से कहने में हमें जितना संकोच
होता है, उससे कही ज्यादा सुनने वालों को उन्हें सुनकर बोरियत होती है
सुनना भी कौन चाहेगा ? ये नीरस बातें, असफलता की बातें , जिंदगी की हार की बातें,
इसीलिए इन मुश्किल भरे दिनों में हमदोनों एक-दूसरे के कुछ ज्यादा ही करीब आ गए
क्योंकि आज दूसरा कोई हमसे बात करने वाला भी नहीं   
          क्या करें ? फुर्सत ही नहीं मिलती थी - उनदिनों जब मैं सफलता की सीढियां तेजी से चढ़ रहा था
बड़ी व्यस्तता थी, दिन-रात भाग-दौड़, उहापोह, लोगों से मिलना जुलना, हर समय ऑफिस, बिजनेस, पैसा, बैंक, गाडी, टूर, नौकर, अमीरी की बरसात में तेजी से उगने वाले बहुत सारे तथाकथित मौसमी दोस्तों की हायब्रिड फसल, सही या गलत मेरी हर बात पर सर-सर कहते हुए बा-अदब
आदाब बजाने वाले एम्प्लाईज की टीम, इन्वेस्टर, फाईनेंसर, थुल-थुल तोंद, फ्रेंच कट दाढ़ी, गंजी चाँद से टकले, सूट-बूट वाले तमाम सारे हाई-फाई प्रोफाइल और बिना किसी बात के मुस्कराते हुए लोग- लोगइयां ….
      आज जब सब कुछ लुट गया, बिज़नेस ठप्प हो गया, मैं फिर मालामाल से कंगाल बन गया तो ये सारे लोग अंतर्ध्यान हो गए,  आज कोई नहीं है, हर ओर बस सन्नाटा ही सन्नाटा है, हार का उपहास उड़ाता हुआ सन्नाटा, असफलताओं से उपजा बैचैन सन्नाटा, तीव्र भयावह नीरव-सन्नाटा, कोई नहीं जो इस खराब समय में मेरा साथ दे, सहारा दे, कुछ दे न दे - कम से कम मेरे लिए सान्तवना के दो शब्द ही बोल दे …
विचित्र अनुभव कर रहा हूँ -त्रासद-अकेलेपन के विशुद्ध एवं चरम-एकान्त का
और इसीलिए परम्परागत रूप से हम दोनों आज पुनः साथ-साथ ---
मैं आत्मा और मेरा मानव- शरीर
        एक मैं ….सबको जीतने,
अपने लछ्य को प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करने वाला और जीवन की सभी  समस्याओं के हल का उपदेश देने वाला, सदा, सर्वथा, अमिट, अनादि, अनंत, ज्ञान-स्वरुप, आत्मस्वरूप मैं आत्मा - जेपी. मोटिवेटर - - ( JP-M)
        और दूसरा ….टूटने की कगार तक थका हुआ, हारा हुआ, युवावस्था में ही बुजुर्गियत का अनचाहा बोझ अपने कन्धों पर उठाये, जीवन से मायूस, अपने जीवन के अंतिम पड़ाव की ओर धीरे-धीरे बढ़ता हुआ, मानवीय गुणों-दुर्गुणों से परिपूर्ण मानव-मात्र - मेरा मानव शरीर - जेपी. इंटरप्रेन्योर  -- ( JP-E)
        बड़ा आसान था दूसरों को उपदेश देना, उन्हें सही राह दिखाना, प्रेरित करना, पॉजिटिव थिंकिंग का ज्ञान बताना,
आज जब  उंचाई से गिरे तो सारा ज्ञान धरा का धरा रह गया,  जब आज खुद समस्याओं से घिर गए तो अब आगे का रास्ता नहीं सूझ रहा…
आप ही बताएं
  -अब जीवन कैसे जिया जाए - - - मंजिल का कहीं अता-पता नही-जाएँ तो जाएँ कहाँ
थम सी गयी है जिंदगी- रुक सी गयी है जीवन यात्रा ---
आखिर कब समाप्त होगी मेरे जीवन-संघर्ष की अनंत यात्रा
एक
उदयमी की अंतिम-यात्रा - लास्ट जर्नी ऑफ़ अन इंटरप्रेन्योर  आज से प्रारम्भ हो रही है ….(अ रियल स्टोरी लाइव)…
                                                   आप सभी के अमूल्य विचारों, टिप्पड़िओं, सुझावो का स्वागत है

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